चकबन्दी में समायी है उत्तराखण्ड की समृद्धि
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गणेश सिंह ‘गरीब’
प्रश्न- आप पिछले चालीस सालों से उत्तराखण्ड में चकबन्दी के लिये प्रयासरत हैं परन्तु वास्तव में चकबन्दी होती क्या है?
‘गरीब’ - उत्तराखण्ड राज्य गठन से पूर्व यह पहाड़ी भू-भाग उत्तर प्रदेश राज्य का अंग था, परन्तु भौगोलिक, सांस्कृतिक व सामाजिक भिन्नता तथा विकास की दौड़ में पिछड़ने के कारण यहां पर लम्बे समय तक पृथक राज्य बनाने हेतु एक लम्बा आन्दोलन चला। 9 नवम्बर 2000 को यह उत्तरांचल नाम से भारत के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। राज्य बनने पर प्रत्येक उत्तराखण्ड वासी के मन में बड़ी आशाऐं व अपेक्षायें थी कि नये पर्वतीय राज्य के रूप में स्थापित होने पर यहां की स्थानीय जन-प्रतिनिधियों द्वारा गठित सरकार यहां के जनहित के मुद्दों को सर्वोपरि रखकर कार्यवाही करेगी। प्रदेश सरकार की अपनी नीतियां होंगी तो सरकार स्थानीय जनहित में नीतियों का निरूपण भी करेगी। क्या गाँव, क्या नगर प्राकृतिक रूप से समृद्ध यह क्षेत्र खुशहाल होगा। प्रदेश में आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक समृद्धि आयेगी। उद्यमशीलता के साथ-साथ उत्पादन भी बढ़ेगा। रोजगार के अनेकानेक अवसर सृजित होने से पलायन रूकेगा। राज्य में चहुँओर सुख समृद्धि आयेगी। चकबन्दी के जरिये भूमि सुधार होगा। राज्य बने 20 साल व्यतीत हो चुके हैं, परन्तु मसला जस का तस बना हुआ है। इसका सीधा प्रभाव आप उत्तराखण्ड के गाँवों में देख सकते हैं । पहले यहां से यदा-कदा ही पलायन होता था। परन्तु उत्तराखण्ड बनने के बाद तेजी से पलायन हुआ है। गाँवों में खेत-खलियान बंजर होते जा रहे हैं। रही-सही कसर गांव में शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं की बेरूखी ने पूरी कर दी है।
चकबन्दी को समझने से पूर्व यह बात समझनी नितान्त आवश्यक है कि जमीन सदा से ही स्थायी रोजगार का माध्यम रही है। देश की 77 फीसदी आबादी आज भी गाँवों में निवास करती है। जीवन जीने के लिये आवश्यक दूध, दही, घी, अनाज आदि का उत्पादन गाँवों में ही होता है। भारत में कृषि तथा कृषिजन्य रोजगार आज भी आजीविका के मुख्य साधन हैं। यह भी सत्य है कि बिना गाँवों में सम्पन्नता लाये देश में सुख-समृद्धि की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
चकबन्दी का सीधा अर्थ मीलों, फलाँगों तक फैले खेतों को संगठित कर एकत्रित करना है ताकि एक चेक बन सके। चकबन्दी का अर्थ बिखरे समाज को एकत्रित करना। समाज की मूल विचार/सोच या अवधारणा को संगठित करना भी है। वास्तव में जमीन को ‘सुनियोजित’ तथा ‘न्यायोचित’ तरीके से भूमि का उचित प्रबन्धन करना ही चकबन्दी कहलाता है।
प्रश्न- अपने दो शब्दों ‘सुनियोजित’ तथा ‘न्यायोचित’ पर बहुत जोर दिया है वास्तव में ‘सुनियोजित’ तथा ‘न्यायोचित’ से आपका क्या आशय है ?
‘गरीब’’-‘सुनियोजित’-भूमि का प्रबन्धन इस प्रकर से किया जाए कि उत्पादकता के साथ निरन्तरता बनी रहे। उत्पादन क्षमता में बढ़ोत्तरी हो। सभी को रोजगार सुलभ हो। प्रत्येक की पर्यावरण में भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। हमें कृषि, उद्यान, वन, आवासीय भूमि तथा नदियों, मूल जल स्रोंतों, खाल-चाल आदि के लिए एक निश्चित रकबा तय करना होगा वास्तव में उचित भू-प्रबन्धन ही सुनियोजन है।
‘न्यायोचित’-प्रत्येक व्यक्ति को जीने का अधिकार मिले। उसे अपने हिस्से का चेक मिले। प्रत्येक व्यक्ति को रोजी-रोटी का अधिकार मिले ताकि वह स्वावलम्बी हो कर जीवन जी सके। भूमि जोत का अधिकार मिले यानि जिसकी जोत उसकी भूमि। गाँव में प्रत्येक परिवार के पास कम से कम 20 नाली भूमि अवश्य होनी चाहिए। चकबन्दी विधेयक में इसका स्पष्ट प्राविधान होना चाहिए। चकबन्दी कमेटी प्रत्येक गाँव में होनी चाहिए। गाँवों में चकबन्दी करते समय कमेटी की सलाह के आधार पर व्यापक चर्चा करते हुए चकबन्दी लागू की जानी चाहिए। तभी न्यायोचित शब्द की सार्थकता को सिद्ध किया जा सकता है।
प्रश्न- पहाड़ों में चकबन्दी क्यों आवश्यक है ?
‘गरीब’- वास्तव में उत्तराखण्ड की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक समृद्धि चेकबन्दी में समायी हुयी है। चेकबन्दी का सीधा सम्बन्ध खेती, गांव और किसानी से जुड़ा हुआ है। उत्तराखण्ड का प्रत्येक मूल निवासी मूलरूप से किसान है। किसान का सीधा सम्बन्ध खेती व जमीन से है। किसान ही जीवधारियों का अन्नदाता है। किसान को जहां भी खेती योग्य जमीन उपलब्ध हुई वहीं पर उसने अपना गाँव बसाया। खेती, किसानी को अपनाते हुए ही गांवों में देश काल परिस्थिति के अनुसार लोकगीतों, लोकधुनों, वाद्य यंत्रों तथा भाषा का प्रचार-प्रसार हुआ है। इस तरह से हजार वर्षों के सतत् प्रयास के पश्चात् हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति, हमारी पहचान, हमारे अस्तित्व, रीति-रिवाज, नाते-रिश्ते आदि का विकास हुआ है। उत्तराखण्ड में यदि बिखरी जोत की समस्या न हो तो यह राज्य भी हिमाचल की तरह ही सम्पन्न हो सकता है। चक उपलब्ध होने पर राज्य के ग्रामीण अंचल के लाखों परिवार पूर्ण रूप से कृषि भूमि को उत्पादनोन्मुखी बनाकर स्वरोजगार व आमदनी कमा सकते हैं। भूमि का एक स्थान पर चक उपलब्ध होने पर भूस्वामी अपनी जमीन के अनुसार चक में अपनी सोच, सुविधा, भूमि योग्यता, अपनी सामर्थ्य तथा आवश्यकतानुसार योजना तैयार कर सकता है।भूस्वामी यहां पर वैज्ञानिक तरीके से लाभकारी खेती, बागवानी, पशुपालन, उद्यान, वानिकी आदि का कार्य अपनी सुविधानुसार कर सकता है। यदि उत्तराखण्ड में चकबन्दी लागू होती है तो अनुसूचित जाति, जनजाति व भूमिहीनों को भी भू-स्वामित्व का अधिकार मिल सकता है। यहां के काश्तकार, शिल्पकार एवं दस्तकार अपने पुश्तैनी कार्य में जुट सकते हैं। चकबन्दी लागू होने से परिवार में बंटवारे-संटवारे, क्रय-विक्रय, संजायती खाते सम्बन्धी भूमि विवाद समाप्त हो सकते हैं। भूमि तथा जल संरक्षण की जानकारी उत्तराखण्ड के पुरातन ज्ञान में समायी हुई है। पर्यावरण में उत्तराखण्ड की जनता की सदैव स्वैच्छिक भागीदारी रही है। चकबन्दी होने से यहां के लोक संस्कार, संस्कृति, बोली-भाषा, सामाजिक रीति-रिवाज, रिश्ते-नाते, गाँव खेत व बीज सुरक्षित रह सकते हैं।
प्र0- व्यावहारिक रूप में चकबन्दी कैसे सम्भव है ?
‘गरीब’- व्यावहारिक रूप में चकबन्दी अभी इसलिये मुश्किल लग रही है क्योंकि वास्तव में राज्य सरकार ने अभी तक चकबन्दी के अनुकूल वातावरण ही तैयार नहीं किया है। राज्य सरकार ने चकबन्दी समिति का गठन तो किया है परन्तु उत्तराखण्ड में गठित अभी तक की सरकारें चकबन्दी का मूल आशय ही नहीं समझ पायी हैं। राज्य सरकारों ने उत्तराखण्ड के आमजनमानस को चकबन्दी के नाम पर भटकाने का कार्य किया है। राज्य में कम से कम एक आदर्श गाँव तो विकसित किया जा सकता है। यदि सरकार वातावरण बनाये और चकबन्दी की मूल भावना के अनुरूप आगे बढ़े तो इसके सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं।हिमाचल प्रदेश आज कृषि बागवानी क्षेत्र में हमसे कई गुना आगे है। यही कारण है कि आज हिमाचल से नगण्य पलायन हुआ है। वहीं दूसरी ओर हमारे राज्य में पलायन तेजी से हुआ है। यदि भूमि सुधार व चकबन्दी कार्यक्रम को राज्य सरकार एक अभियान के रूप में अपनाती है तो निश्चित रूप से केवल एक दशक से भी कम समय में राज्य में सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं।
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